Saturday, 15 September 2012

                  बदलाव 

 जी मचल रहा है कुछ पाने को, कुछ खोने को।
सपना मन कुछ बुन रहा है कुछ हँसने को, कुछ रोने को।

ये हँसना रोना कुछ ऐसा है,
जैसे पतझड़ में सावन की तरह ,
दिल में धड़कन की तरह 
फिर साज से राग बनाने जैसा है।

लगता है जैसे कुछ अलग सा होने वाला है,
अभी बादल गड़जने वाले हैं , दिल का ताड़ छेड़ने वाले हैं,
ये ज्ञान बदलने वाला है विज्ञान बदलने वाला है।

ये तरंग है उमंग का  उल्लास का ,
ये तो बस संकेत है बदलाव के विश्वास का।

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