Saturday, 30 March 2013

माया की महिमा !


              माया की महिमा !

क्या अपने क्या पराये, सबकी अपनी- अपनी एक माया है।
अपने-अपने स्वार्थ की वजह से दोनों जैसे हमसाया हैं।
ये सब माया का चक्कर है, सब पैसे की माया है।
खोजते सभी उसी को हैं, जिसके पास ये माया है।

कौन यहाँ किसी का है, माया है तो उसी का है ।
नहीं देता किसी का कोई साथ यहाँ, कोई नहीं निस्वार्थ यहाँ ।
यहाँ तो नाता- रिश्ता भी माया है;
अगर देता है कोई साथ है तो, समझो सब माया की महिमा है।
लोग यहाँ बड़े वही जो बड़े मायावी हैं;
माया बिन जो खड़े यहाँ पे, वो तो बड़े पापी हैं।

Friday, 29 March 2013

मां !

              मां !

याद बहुत सताती है तेरी मुझको ।
फिर रोता बहुत हूँ बिन आँखों में पानी के ।
करूँ मैं  क्या कुछ , समझ न आता है मुझको ,
बस याद बहुत आता है मां मुझको ,
तेरा वो डांटना फिर मनाकर मुझे खिलाना । 

इसी यादों के सहारे टूट - टूट कर जुड़ता हूँ मैं ।
और इस दुनियादारी के चक्कर में ,
पल-पल मरता मिटता हूँ मैं।
अपने-अपने स्वार्थ से वशीभूत यहाँ सभी हैं;
बस तू ही है निस्वार्थ मां  ।