Saturday, 30 March 2013

माया की महिमा !


              माया की महिमा !

क्या अपने क्या पराये, सबकी अपनी- अपनी एक माया है।
अपने-अपने स्वार्थ की वजह से दोनों जैसे हमसाया हैं।
ये सब माया का चक्कर है, सब पैसे की माया है।
खोजते सभी उसी को हैं, जिसके पास ये माया है।

कौन यहाँ किसी का है, माया है तो उसी का है ।
नहीं देता किसी का कोई साथ यहाँ, कोई नहीं निस्वार्थ यहाँ ।
यहाँ तो नाता- रिश्ता भी माया है;
अगर देता है कोई साथ है तो, समझो सब माया की महिमा है।
लोग यहाँ बड़े वही जो बड़े मायावी हैं;
माया बिन जो खड़े यहाँ पे, वो तो बड़े पापी हैं।

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