Friday, 29 March 2013

मां !

              मां !

याद बहुत सताती है तेरी मुझको ।
फिर रोता बहुत हूँ बिन आँखों में पानी के ।
करूँ मैं  क्या कुछ , समझ न आता है मुझको ,
बस याद बहुत आता है मां मुझको ,
तेरा वो डांटना फिर मनाकर मुझे खिलाना । 

इसी यादों के सहारे टूट - टूट कर जुड़ता हूँ मैं ।
और इस दुनियादारी के चक्कर में ,
पल-पल मरता मिटता हूँ मैं।
अपने-अपने स्वार्थ से वशीभूत यहाँ सभी हैं;
बस तू ही है निस्वार्थ मां  ।

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